दुर्गा चालीसा

!! दुर्गा चालीसा !!

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते ।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो अम्बे दुख हरनी ।

निरंकार है ज्योति तुम्हारी, तिहुँ लोक फैली उजियारी ।

शशि ललाट मुख महा विशाला, नेत्र लाल भ्रकुटी विकराला ।

रूप मातु को अधिक सुहावे, दरश करत जन अति सुख पावै ।

तुम संसार शक्ति लय कीना, पालन हेतु अन्न धन दीना ।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला, तुमही आदि सुन्दरी बाला ।

प्रलय काल सब नाशनहारी, तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ।

रूप सरस्वती को तुम धारा, दे सुबुद्धि रिषि मुनिन उबारा ।

घरो रूप नरसिंह को अम्बा, प्रकट भई फाड़ के खम्मा ।।10।।


रक्षा कर प्रहलाद बचायो, हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।

लक्ष्मी रूप धरो जगमाहीं, श्री नारायण अंग समाहीं ।क्षीरसिंधु में करत विलाशा, दयासिंधु दीजै मन आसा ।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जाय बखानी ।

मातंगी धूमावती माता, भुवनेश्वरी बगला सुखदाता ।

श्रीभैरव तारा जग तारिणी, छिन्नमाल भव दुःख निवारिणि ।

केहरि वाहन सोह भवानी, लंगुर वीर चलत अगवानी ।

करमें खप्पर खंग विराजै, जाको देखि काल डर भाजे ।

हाथ में सोहै अस्त्र तिरसूला, जाते उठत शत्रु हिय शूला ।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत, तिहूं लोक में डंका बाजत ।।20||


शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे, रक्त्त बीज शंखन संहारे ।

महिषासुर नृप अति अभिमानी, जेहि अध भर मही अकुलानी ।

रूप कराल कालि को धारा, सेन सहित तुम तिहि संहारा ।

परी भीर सन्तन पर जब जब भई सहाय मातु तुम तब तब ।

अमरपुरी और बा सब लोका, तब महिमा सब रहे अशोका ।

बाला में है ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा पूजें नर-नारी ।

प्रेम भक्त्ति से जो यश गावें, दुख दारिद्र निकट नहिं आवे ।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई, जन्म मरण से सो छुटि जाई ।

योगी सुर मुनि कहत पुकारी, योग न हो बिनु शक्ति तुम्हारी ।

शंकर आश्चर्य तप कीनों, काम क्रोध जीत सब लीनों ।।30||


निशि दिन ध्यान धरो शंकर को, माहू कालनहिं सुमिरो तुमको ।

शक्ति रूप को मरम न पायो, शक्ति गई तब मन पछिताओ ।

शरणगति हुए कीर्ति बखानी, जय जय जय जगदंब भवानी ।

भई प्रसन्न आदि जगदंबा, दई शक्ति नहिं कीन्ह विलम्बा ।

मोको मातु कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ।

आशा तृष्णा निपट सतावे, रिपु मूरख मोहि अति डरपावे ।

शत्रु, नाश कीजै महारानी, सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ।

करो कृपा हे मातु दयाला, ऋद्धि सिद्धि दे करहु निहाला ।

जब लगि जियों दया फल पाऊं, तुम्हरों यश मैं सदा सुनाऊँ ।

दुर्गा चालीसा जो जन गावै, सब सुख भोग परम पद पावै ।।40।।

मोको मातु शरण निज जानी, करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।