आरती
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा । माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ।। जय.... एक दन्त दया वन्त, चार भुजाधारी । मस्तक पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी ।। जय..... अंधन को आँख देत कोढ़िन को काया । बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया ।।
बोलु जयकारा मैया चिटाने वाली तेरे री भवन में -२ तेरे री भवन में मैया ब्रहमा जी भी आए वेद सुनाया बड़ा प्यारा, मैया तेरे री भवन में मैं बोलु जयकारा... तेरी री भवन में मैया विष्णुजी भी आए चक चलाया बड़ा प्यार मैया तेरी री भवन में मैं बोलु जयकारा...
ऊँ जय अम्बे गौरी, मैय्या जय श्यामा गौरी मैय्या जय मंगल मूरति, मैय्या जय आनन्द करणी, मैय्या जय संकट हरणी । मैय्या जय जय जय करनी, मैय्या जय ऋद्धि सिद्धी करनी तुमको निस दिन ध्यावे, माता जी को सदा ही मनावे, हर ब्रह्म विष्णु हरि । ऊँ जय अम्बे गौरी ।
अम्बे तु है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली । तेरे ही गुण गाएं भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती । मां इस देश के भक्तजनों पर भीड़ पड़ी है भारी, दानव दल पर टूट पड़ो माँ करके शेर सवारी । सौ सौ सिंहों से बलशाली है दस भुजाओं वाली तेरे ही गुण गाएं भारती, ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती ।
माता री रिद्धी दे, सिद्धी दे, अष्ट नव निधि दे। वंश में वृद्धि दे, माँ श्री भवानी। हृदय में ज्ञान दे, चित्त में ध्यान दे, महा वरदान दे, मन मानी । गुणों की रीत दे, चरणों में प्रीत दे, शत्रुओं से जीत दे, माँ श्री भवानी
मंगल की मेवा, सुन मेरी देवा, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े । पान सुपारी ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट धरें । सुन जगदम्बे, कर न विलम्बे, सन्तन के भण्डार भरे । सन्तन प्रतिपाली सदा खुशिहाली जय काली कल्याण करें । बुद्धि विधाता तू जगमाता, मेरे कारज सिद्ध करें । चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन पड़े ।
ओ३म् जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता । तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु धाता ।। ओ३म् ।। उमा, रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता । सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ।। ओ३म् ।। दुर्गा रूप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता ।
ॐ जय जगदीश हरे, प्रभु ! जगदीश हरे ।। भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे ।। ॐ।। जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मनका सुख-सम्पत्ति घर आवै, कष्ट मिटै तन का ।। प्रभु ।। ॥ॐ॥
ॐ जय सन्तोषी माता, मैय्या जय सन्तोषी माता, अपने सेवक जन को सुख सम्पत्ति दाता । सुन्दर चीर सुनहरी माँ धारण कीन्हों, हीरा पन्ना दमके तन शृंगार लीन्हो । गेरू लाल छटा छवि बदल कमल सोहे, मंद हसंत करूणामयी त्रिभुवन मन मोहे । स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर डुले प्यारे, धूप दीप मधु मेवा भोग लगे न्यारे । शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोहे, सन्तोषी कहलाई भक्तन विभव दीजैं ।
आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।। जाके बल से गिरवर कांपे, रोग दोष जाके निकट न झांके ।। अंजनी पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई ।। दे बीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाये ।। लंका से कोट समुन्द्र सी खाई, जात पवन सुत बार ना लाई ।।
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओमकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्धांगी धारा ॥ ओम जय शिव ओमकारा ॥ एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे । हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ।। ओम जय शिव ओमकारा ॥